
‘AIADMK सुरक्षित हाथों में नहीं, हम पार्टी का पुराना गौरव वा
पस लाएंगे’, बोलीं शशिकला
‘AIADMK सुरक्षित हाथों में नहीं, हम पार्टी का पुराना गौरव वा
पस लाएंगे’, बोलीं शशिकला
किसी भी पहाड़ या शहर की एक भार क्षमता होती है. इंसान अगर उससे ज्यादा निर्माण करेगा या वजन बढ़ाएगा तो वह धंस जाएगी. यही हो रहा है नैनीताल (Nainital) के साथ. नैनीताल पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है. वहां की पहाड़ियां तेजी से दरक रही हैं. धंस रही हैं. गिर रही हैं. उनसे गिरने वाले चूना पत्थर झीलों में जा रहे हैं. भूगर्भ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर नैनीताल में निर्माण कार्य रोके नहीं गए तो इस खूबसूरत पर्यटक शहर को बचा पाना मुश्किल होगा.
अंग्रेजों ने नैनीताल को बसाया था. साफ-सुथरे वातावरण और सभी सुविधाओं से युक्त एक शहर. यहां का हवा-पानी सेहत के हिसाब से बेहतरीन था. अंग्रेजों ने नैनीताल में आबादी तय कर रखी थी कि इससे ज्यादा जनसंख्या यहां नहीं होनी चाहिए. क्योंकि तब भी यह इलाका भूगर्भीय बदलावों के अनुसार संवेदनशील था. नैनीताल का मॉल रोड तो शुरुआत से ही काफी नाजुक इलाके पर बसा है. ऐसे में 1880 में आए विनाशकारी भूस्खलन की याद आती है.
18 सितंबर, 1880 को नैनीताल की आबादी 10 हजार से भी कम थी. तब नैनीताल की अल्मा पहाड़ी, जिसे सात नंबर भी कहते हैं. वहां पर भयानक भूस्खलन हुआ. इसमें 43 ब्रिटिश नागरिकों समेत 151 लोगों की मौत हो गई थी. नैनीताल के इतिहास का सबसे दर्दनाक दिन गिना जाता है इसे. इसके बाद नैनीताल के लोगों की दुनिया बदल गई. तब से यहां पर पहाड़ियों के भार-वहन क्षमता के आकलन की बात होने लगी.
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