
‘AIADMK सुरक्षित हाथों में नहीं, हम पार्टी का पुराना गौरव वा
पस लाएंगे’, बोलीं शशिकला
‘AIADMK सुरक्षित हाथों में नहीं, हम पार्टी का पुराना गौरव वा
पस लाएंगे’, बोलीं शशिकला
दिल्ली में नीला आसमान सपना हो गया है और हवा की गुणवत्ता पिछले तीन दिनों से खराब श्रेणी में बनी हुई है. पिछले साल के मुकाबले पराली जलने के मामले अभी तक कम इसलिए हैं क्योंकि बीते दिनों बारिश हुई थी और अधिकांश पराली पानी में भीगी हुई है. ऐसे में आशंका है कि दिवाली के बाद पराली जलाने की घटनाओं में इजाफा होगा. खेती के साथ पराली जलाने में अव्वल पंजाब से राजधानी की आबोहवा का गैस चैबर में तब्दील होना और दिल्लीवालों की सासों का घुटना सालों से बदस्तूर जारी है. दिल्ली की आबोहवा तो दूर की बात है, पराली जलाने से सबसे पहले किसान का परिवार ही प्रभावित होता है. पंजाब के किसानों की समस्या बहुत जटिल है. संसाधनों की कमी, बारिश का बदलता पैटर्न और सरकारी महकमें में घटते विश्वास ने पराली जलाने को ज्यादा विवश किया. चावल पैदा करने में अव्वल पंजाब के किसानों के सामने एक बड़ी मजबूरी रिसोर्स की कमी है, जो हर साल उन्हें खेतों में पराली जलाने को मजबूर करती है. महंगी पड़ती हैं मशीने
हैपी सीडर या सुपर सीडर मशीन की कीमत 2 लाख रुपए ये ज्यादा है. लेकिन कुछ ही गावों में ऐसी मशीने हैं. बेलर्स, हैपी सीडर्स, सुपर सीडर्स मशीनें किसानों को ग्रामीण सहकारी संस्थाएं किराए पर देती हैं. लेकिन सभी गावों में सहकारी संस्थाएं नहीं हैं. पंजाब के खानवाल गांव के रहने वाले बलदेव सिंह सिरसा ने बताया, “ये मंशीने महंगी पड़ती हैं. पराली प्रबंधन इसलिए मुश्किल है क्योंकि पुआल का गठिया भी बना लें तो रखेंगे कहां और फैकट्री तक ले जाने में लेबर नहीं मिलती है. लोडिंग-अनलोडिंग के लिए किसान के पास ट्रैक्टर है तो किसी के पास सिर्फ ट्राली है.”
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पस लाएंगे’, बोलीं शशिकला
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